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एक चुटकी ज़हर रोजाना

"एक चुटकी ज़हर रोजाना" आरती नामक एक युवती का विवाह हुआ और वह अपने पति और सास के साथ अपने ससुराल में रहने लगी। कुछ ही दिनों बाद आरती को आभास होने लगा कि उसकी सास के साथ पटरी नहीं बैठ रही है। सास पुराने ख़यालों की थी और बहू नए विचारों वाली। आरती और उसकी सास का आये दिन झगडा होने लगा। दिन बीते, महीने बीते. साल भी बीत गया. न तो सास टीका-टिप्पणी करना छोड़ती और न आरती जवाब देना। हालात बद से बदतर होने लगे। आरती को अब अपनी सास से पूरी तरह नफरत हो चुकी थी. आरती के लिए उस समय स्थिति और बुरी हो जाती जब उसे भारतीय परम्पराओं के अनुसार दूसरों के सामने अपनी सास को सम्मान देना पड़ता। अब वह किसी भी तरह सास से छुटकारा पाने की सोचने लगी. एक दिन जब आरती का अपनी सास से झगडा हुआ और पति भी अपनी माँ का पक्ष लेने लगा तो वह नाराज़ होकर मायके चली आई। आरती के पिता आयुर्वेद के डॉक्टर थे. उसने रो-रो कर अपनी व्यथा पिता को सुनाई और बोली – “आप मुझे कोई जहरीली दवा दे दीजिये जो मैं जाकर उस बुढ़िया को पिला दूँ नहीं तो मैं अब ससुराल नहीं जाऊँगी…” बेटी का दुःख समझते हुए पिता ने आरती के सिर पर प्यार से हाथ फे

जीने की कला

जीने की कला किसी गाँव के बाहर रास्ते के किनारे एक बड़ा विषधर सर्प रहता था। उस मार्ग से निकलने वाले मनुष्यों को डस लेता था, इस कारण उसके भय से उस मार्ग से लोगों का आना जाना बन्द हो गया। संयोगवश एक दिन एक महात्मा उस गाँव में पधारे, लोगों ने उनकी सेवा-शुश्रूषा की । जब वह महात्मा उस मार्ग से जाने लगे , तब लोगों ने उनको रोका और निवेदन किया कि महाराज इस रास्ते में एक बड़ा विषधर सर्प रहता है, जो सबको काट लेता है। . इस पर महात्मा ने उत्तर दिया, हम निर्भय हैं, हमारा साँप कुछ नहीं कर सकता, महात्मा उसी मार्ग से चल दिये। सर्प महात्मा को देखकर फुंफकार देता हुआ उनकी ओर दौड़ा, महात्मा ने थोड़ी सी मिट्टी उठाकर मन्त्र पढ़ कर उस पर फेंकी, सर्प वहीं स्थगित हो गया। इसके पश्चात् महात्मा ने उसके पास जाकर उसको उसके पिछले जन्म का ज्ञान कराया और कहने लगे कि तू अपने पिछले जन्म में लोगों को अत्यन्त कष्ट देता था, इससे तुझको सर्प योनि मिली, अब भी तू नहीं मानता है और लोगों को कष्ट पहुँचाता है, तू सबको डसना छोड़ दे, जिससे तुझको भविष्य में अच्छी योनि मिले। सर्प ने कहा जो आज्ञा, अब मैं भविष्य में किसी को नहीं काटूँ

जय जीण भवानी माँ की कहानी

|| जय जीण भवानी माँ की कहानी || !! कथा !! . अति रमणीय मारवाड़ क्षेत्र में घाँघूराव  नामक एक महाबली वीर हुआ। उसने अपने नाम से घाँघूराज्य स्थापित किया तथा घाँघूपुरी नामक नगरी बसाई। महान बुद्धिमान और योद्धा घाँघूराव की राजधानी घाँघूपुरी अत्यंत सुरम्य और मनोहर थी। वह मारवाड़ में विख्यात हो गई। घाँघूराव के हर्ष नामक एक पुत्र तथा जीवणकुँवरी नामक दिव्य शोभा से सुशोभित पुत्री थी। दोनों भाई-बहन में परस्पर महान प्रेम था।  जीवण सुन्दर स्वरूप तथा श्रेष्ठ स्वभाव वाली कन्या थी। उसके ह्रदय में भगवती जगदम्बा की पराभक्ति विद्यमान थी। हे माँ ! तुम्हीं जयन्ती, मंगला, काली, भद्रकाली, कपालिनी, दुर्गा, क्षमा, शिवा, धात्री, स्वाहा और स्वधा विभिन्न नामों से विख्यात हो।  तुम्हें नमस्कार है। इस मंत्र के जप में सदा मनोयोग से लगी रहती थी। वह मंत्र के भाव में ही डूबी रहती थी। परम अनुराग से परिपूर्ण ह्रदय से वह सदैव माँ को भजती रहती। माता-पिता और प्रिय भाई हर्ष उसे लाड़-प्यार से जीण कह कर ही बुलाते थे। वह जीण नाम से ही विख्यात हो गई। आभलदे नामक एक कुलीन कन्या थी, जिसे अपने सुन्दर रूप का बहुत गर्व था। उसके सा

सबसे बडा रोग, क्या कहेंगे लोग

सबसे बडा रोग, क्या कहेंगे लोग बौद्ध भिक्षुक किसी नदी के पनघट पर गया और पानी पीकर पत्थर पर सिर रखकर सो गया। पनघट पर पनिहारिन आती-जाती रहती हैं तो तीन-चार पनिहारिनें पानी के लिए आईं तो एक पनिहारिन ने कहा, "आहा! साधु हो गया, फिर भी तकिए का मोह नहीं गया। पत्थर का ही सही, लेकिन रखा तो है।" पनिहारिन की बात साधु ने सुन ली। उसने तुरंत पत्थर फेंक दिया। दूसरी बोली," साधु हुआ, लेकिन खीज नहीं गई। अभी रोष नहीं गया, तकिया फेंक दिया।" तब साधु सोचने लगा, अब वह क्या करें? तब तीसरी पनिहारिन बोली,"बाबा! यह तो पनघट है, यहां तो हमारी जैसी पनिहारिनें आती ही रहेंगी, बोलती ही रहेंगी, उनके कहने पर तुम बार-बार परिवर्तन करोगे तो साधना कब करोगे?" लेकिन एक चौथी पनिहारिन ने बहुत ही सुन्दर और एक बड़ी अद्भुत बात कह दी,"साधु, क्षमा करना, लेकिन हमको लगता है, तूने सब कुछ छोड़ा लेकिन अपना चित्त नहीं छोड़ा है, अभी तक वहीं का वहीं बना हुआ है। दुनिया पाखण्डी कहे तो कहे, तू जैसा भी है, हरिनाम लेता रह।" सच है दुनिया का तो काम ही है कहना। ऊपर देखकर चलोगे तो कहेंगे... ‘अभिमानी हो ग

जीवन की सच्चाई

*जीवन की सच्चाई*                     ☝🏻 एक आदमी की चार ✌🏻✌🏻पत्नियाँ थी । वह अपनी ✌🏻✌🏻चौथी पत्नी  से  बहुत प्यार  करता था और उसकी खूब देखभाल करता व उसको सबसे श्रेष्ठ देता । वह अपनी ✌🏻☝🏻तीसरी पत्नी से भी प्यार करता था और हमेशा उसे अपने  मित्रों  को  दिखाना  चाहता था । हालांकि उसे हमेशा डर था की वह कभी भी किसी दुसरे इंसान के साथ भाग सकती है । वह अपनी ✌🏻दूसरी पत्नी से भी प्यार करता था । जब भी उसे कोई परेशानी आती तो वे अपनी दुसरे नंबर की पत्नी के  पास  जाता  और  वो  उसकी  समस्या सुलझा देती । वह अपनी ☝🏻पहली पत्नी से प्यार नहीं करता था जबकि पत्नी उससे बहुत गहरा प्यार करती थी और उसकी खूब देखभाल करती । एक दिन वह बहुत बीमार पड़  गया और  जानता था की जल्दी ही वह मर जाएगा । उसने  अपने  आप से कहा, "मेरी चार पत्नियां हैं, उनमें से मैं एक को अपने साथ ले जाता हूँ..जब मैं मरूं तो वह मरने में मेरा साथ दे ।" तब उसने चौथी पत्नी से अपने साथ आने को कहा तो वह बोली, "नहीं, ऐसा तो हो ही नहीं सकता और चली गयी । उसने तीसरी पत्नी से पूछा तो वह बोली की, "ज़िन्दगी ब