ज्योतिष रोग और उपाय
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हर बीमारी का समबन्ध किसी न किसी ग्रह से है जो आपकी कुंडली में या तो कमजोर है या फिर दुसरे ग्रहों से बुरी तरह प्रभावित है | यहाँ सभी बीमारियों का जिक्र नहीं करूंगी । केवल सामान्य रोग जो आजकल बहुत से लोगों को हैं उन्ही का जिक्र संक्षेप में करने की कोशिश करती हूँ | यदि स्वास्थ्य सबसे बड़ा धन है तो आज धनवान कोई नहीं है | हर व्यक्ति की कोई न कोई कमजोरी होती है जहाँ आकर व्यक्ति बीमार हो जाता है | हर व्यक्ति के शरीर की संरचना अलग होती है | किसे कब क्या कष्ट होगा यह तो डाक्टर भी नहीं बता सकता परन्तु ज्योतिष इसकी पूर्वसूचना दे देता है कि आप किस रोग से पीड़ित होंगे या क्या व्याधि आपको शीघ्र प्रभावित करेगी |
सूर्य से रोग
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सूर्य ग्रहों का राजा है इसलिए यदि सूर्य आपका बलवान है तो बीमारियाँ कुछ भी हों आप कभी परवाह नहीं करेंगे | क्योंकि आपकी आत्मा बलवान होगी | आप शरीर की मामूली व्याधियों की परवाह नहीं करेंगे | परन्तु सूर्य अच्छा नहीं है तो सबसे पहले आपके बाल झड़ेंगे | सर में दर्द अक्सर होगा और आपको पेन किलर का सहारा लेना ही पड़ेगा।
उपाय
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सूर्यग्रह की अनुकूलता हेतु आराध्य देव- 'विष्णु भगवान' वैदिक उपाय : सूर्य के वैदिक मंत्र का सात हजार जप करना चाहिए। वैदिक मंत्र से सूर्य भगवान को प्रातः काल जल का अर्घ्य सिंदूर या लाल फूल डालकर देना चाहिए। वैदिक मंत्र : ऊँ आकृष्णेन रजसा वर्तमानो निवेशयन्न मृतं मर्त्त्यंन्च हिरण्येन सविता रथेना देवो याति भुवनानि पश्यन्। तांत्रिक मंत्र 1. ऊँ ह्रां हृीं हृौं सः सूर्याय नमः 2. ऊँ घृणि सूर्याय नमः (तांत्रिक उपाय) सूर्य के उपर्युक्त मंत्र का जप अठ्ठाईस हजार करना चाहिए। आदित्य हृदय स्तोत्रम् का पाठ चालीस दिन करना चाहिए। सूर्य गायत्री मंत्र (एक बार) आदित्याय विद्महे प्रभाकराय धीमहि तन्नोः सूर्य प्रचोद्यात्॥
सूर्य यंत्र : सूर्य के यंत्र को भोजपत्र पर अष्टगंध से अनार की कलम से रविवार को लिख कर पंचोपचार पूजन कर, अथवा ताम्र पत्र पर गुरु पुष्य, रवि पुष्य, अमृत योग काल उत्कीर्ण करा कर लाल धागे में गूंथ कर गले या बांह में रविवार को प्रातः काल धारण करना चाहिए। व्रत का विधान : ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष के प्रथम रविवार से प्रारंभ कर कम से कम बारह और अधिक से अधिक तीस व्रत रखें। सूर्यास्त से पूर्व गेहूं की रोटी, गुड़ या गुड़-गेहूं-घी से बना हलुआ खाएं। नमक बिल्कुल नहीं खाना चाहिए। दिन में लाल वस्त्र धारण करें तथा लाल चन्दन का टीका (तिलक) करें।
दान : सोना, माणिक्य, तांबा, गेहूं, गुड़, घी, पुष्प, केसर, मूंगा, लाल गाय, रक्त वस्त्र, रक्त, चामर, रक्त चंदन रविवार को दान करना चाहिए। हवन : समिधा, आक की लकड़ी। औषधि स्नान : मैनसिल, इलायची, देवदारू, केसर, खस, मूलहट्टी, रक्त पुष्प, को जल में डाल कर स्नान करना चाहिए।
रत्न धारण : सूर्य का रत्न मणिक्य 5( रत्ती से अधिक 7( रत्ती तक स्वर्ण या ताम्र में मंढ़वा कर, रविवार को कच्चे दूध एवं गंगा जल से धो कर, प्राण प्रतिष्ठा ब्राह्मणों से करा कर या सूर्य के किसी तांत्रिक मंत्र को ग्यारह बार पढ़ कर सीधे हाथ की अनामिका उंगली में धारण करना चाहिए।
जड़ी धारण : रविवार की प्रातः काल को जडी़ ( इंच का टुकड़ा लाल कपड़े में सी कर गंगाजल से यंत्र को धो कर, सीधे हाथ में धारण करना चाहिए।
चन्द्र से मानसिक रोग
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चन्द्र संवेदनशील लोगों का अधिष्ठाता ग्रह है | यदि चन्द्र दुर्बल हुआ तो मन कमजोर होगा और आप भावुक अधिक होंगे | कठोरता से आप तुरंत प्रभावित हो जायेंगे और सहनशक्ति कम होगी | इसके बाद सर्दी जुकाम और खांसी कफ जैसी व्याधियों से शीग्र प्रभावित हो जायेंगे | सलाह है कि संक्रमित व्यक्ति के सम्पर्क में न आयें क्योंकि आपको भी संक्रमित होते देर नहीं लगेगी | चन्द्र अधिक कमजोर होने से नजला से पीड़ित होंगे | चन्द्र की वजह से नर्वस सिस्टम भी प्रभावित होता है |
उपाय
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चंद्रमा ग्रह की अनुकूलता हेतु आराध्य देव-शिव वैदिक उपाय : चंद्रमा के वैदिक मंत्र का 11000 जप करना चाहिए। वैदिक मंत्र से सायं काल दुग्ध से चंद्रमा को अर्घ्य देना चाहिए।
वैदिक मंत्र : ऊँ इमं देवा असपलग्वं सुबध्वं महते क्षत्रय महते ज्येष्ठयाय महते जानराज्यायेन्द्रस्येन्द्रियाय। इमममुष्य पुत्रमनुष्यै पुत्र मस्यै विशएष वोऽमी राजा सोमेऽस्माकं ब्रह्मणानाग्वं राजा॥ तांत्रिक मंत्र 1. ऊँ श्रां श्रीं श्रौं सः चंद्रमसे नमः 2. ऊँ सों सोमाय नमः 3.
सोमवार व्रत : यह व्रत ज्येष्ठ या श्रावण मास के शुक्ल पक्ष के प्रथम सोमवार से प्रारंभ करना चाहिए। कम से कम दस और अधिक से अधिक चौवन व्रत करने चाहिएं।
दान : मोती, चांदी, चावल, मिसरी, हल्दी, सफेद कपड़ा, दक्षिणा, सफेद फूल, शंख, कपूर, श्वेत बैल, श्वेत चंदन। हवन : समिधा, पलाश की लकड़ी। औषधि स्नान : पंचगव्य, गजमद, शंख, सिप्पी, श्वेत चंदन, स्फटिक। तांत्रिक टोटका (क) नदी में चांदी डालें। (ख) पानी और दूध को मिला कर रात में सोते समय अपने सिरहाने (तकिया के नीचे) रखें और सुबह कीकर, पीपल वृक्ष में डाल दें। (ग) चांदी, पानी, दूध दान करें। (घ) चांदी का चंद्रमा बनवा कर भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को चंद्रमा की पूजा कर धारण करें। (ड़) प्रथम भाव दूषित होने पर अपने साथ चावल और चांदी रखें। (च) तृतीय भाव दूषित होने पर कुंवारी लड़की को हरा वस्त्र दान दें। (छ) चतुर्थ भाव दूषित होने पर रात में दूध न पीएं। दूसरे को दूध पिलाएं। (ज) अष्टम भाव दूषित होने पर किसी मरघट या मजार के नजदीक के कुंए का जल अपने घर में रखें। (झ) दशम भाव दूषित होने पर रात में दूध न लें। (अ) एकादश भाव दूषित होने पर भैरवजी को दूध चढ़ावें। रत्न धारण : शुद्ध मोती 5( रत्ती चांदी में मंढ़वा कर सोमवार के दिन प्रातः काल कच्चे दूध में धो कर व ब्राह्मण से प्राण प्रतिष्ठा करवाकर या चंद्रमा के मंत्र का ग्यारह बार जप कर, सीधे हाथ की कनिष्ठा उंगली में धारण करना चाहिए।
जड़ी औषधि धारण : सोमवार के दिन प्रातः काल श्वेत आक की जड़ की मिट्टी खोदकर निकाल लें पुनः गंगा जल से धो कर श्वेत वस्त्र में सीकर सीधे हाथ में धारण करना चाहिए।
सुस्त व्यक्ति और मंगल
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मंगल रक्त का प्रतिनिधित्व करता है परन्तु जिनका मंगल कमजोर होता है रक्त की बीमारियों के अतिरिक्त जोश की .कमी होगी | ऐसे व्यक्ति हर काम को धीरे धीरे करेंगे | आपने देखा होगा कुछ लोग हमेशा सुस्त दिखाई देते हैं और हर काम को भी उस ऊर्जा से नहीं कर पाते | अधिक खराब मंगल से चोट चपेट और एक्सीडेंट आदि का खतरा रहता है |
उपाय
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मंगल ग्रह की अनुकूलता हेतु आराध्य देवश्री हनुमानजी, शिवजी तथा श्री गणेशजी वैदिक उपाय : मंगल के वैदिक मंत्र का जाप दस हजार बार करना चाहिए। वैदिक मंत्र ऊँ अग्निर्मूर्द्धादवः ककुत्पति पृथिव्याअयमपाग्वं रेताग्वंसि जिन्वति॥ वैदिक मंत्र से मंगलवार के दिन हनुमान जी को सिंदूर, चोला, जनेऊ, लाल फूल, लड्डू चढ़ाना चाहिए। तांत्रिक मंत्र 1. ऊँ क्रां क्रीं क्रौं सः भौमाय नमः 2. ऊँ अं अंगारकाय नमः 3. मंगलवार के दिन मंगल के तांत्रिक मंत्र का 40000 का जप करना चाहिए। भौम गायत्री मंत्र : ऊँ अंगारकाय विद्महे शक्ति हस्ताय धीमहि तन्नो भौमः प्रचोदयात्। (इस मंत्र का नित्य 108 बार जप करना चाहिये)
ग्रह पीड़ा निवृत्ति हेतु यंत्र : मंगल के यंत्र को मंगलवार के दिन रक्त चंदन से अनार की कलम से भोज पत्र पर लिख कर पंचोपचार पूजन कर के तांबे या सोने के ताबीज में मढ़वा कर अथवा ताम्रपत्र पर मंगल यंत्र को मंगलवार को ही उत्कीर्ण करा कर लाल धागों में गूंथ कर मंगलवार को गले या बांह में धारण करना चाहिए।
दान : मूंगा, सोना, कनक (विष), गुड़, तांबा, रक्त चंदन, रक्त वस्त्र, लाल बैल, मसूर, लाल फूल, दक्षिणा। हवन : हवन समिधा, बिल्व पत्र, लकड़ी। औषधि स्नान : बिल्व छाल, रक्त चंदन, धमनी, लाल फूल, सिंगर, माल कंगनी, मौलश्री आदि। रत्न धारण : लाल मूंगा 6( रत्ती या सिंदूरी मूंगे को स्वर्ण या ताम्र में मढ़वा कर मंगलवार को कच्चे दूध में तथा गंगा जल में धो कर, ग्यारह बार मंगल मंत्र से प्राण प्रतिष्ठा करा कर अनामिका उंगली में धारण करना चाहिए।
औषधि धारण : अनंत मूल को लाल कपड़े में सिल कर मंगलवार को सीधे हाथ में बांधना चाहिए। आवश्यकतानुसार संकल्प पूर्वक पाठ करें अथवा करावें। उसके बाद ब्राह्मण भोजन करा कर दक्षिणा दे कर समापन करें, अथवा प्रति दिन स्वयं पाठ करना चाहिए।
बुध से दमा और अन्य रोग
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बुध व्यक्ति को चालाक और धूर्त बनाता है | आज यदि आप चालाक नहीं हैं तो दुसरे लोग आपका हर दिन फायदा उठाएंगे | भोले भाले लोगों का बुध अवश्य कमजोर होता है | अधिक खराब बुध से व्यक्ति को चमड़ी के रोग अधिक होते हैं | साँस की बीमारियाँ बुध के दूषित होने से होती हैं | बेहद खराब बुध से व्यक्ति के फेफड़े खराब होने का भय रहता है | व्यक्ति हकलाता है तो भी बुध के कारण और गूंगा बहरापन भी बुध के कारण ही होता है |
उपाय
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बुध ग्रह की अनुकूलता हेतु आराध्य देव-श्री दुर्गाजी, श्री गणेश जी वैदिक उपाय वैदिक मंत्र ऊँ उद्बुधस्याग्ने प्रति जागृहित्वमिंष्टापूर्ते सग्वं सृजेथामयंन्च। अस्मिन्सद्यस्ते अध्युत्तरस्मिन् विश्वेदेवायजमानश्य सींदत्॥ बुध ग्रह के वैदिक मंत्र का नौ हजार जप करना चाहिए। तांत्रिक मंत्र (क) ऊँ ब्रां ब्रीं ब्रौं सः बुधाय नमः। (ख) बुं बुधाय नमः। बुध ग्रह के तांत्रिक मंत्र का छत्तीस हजार जाप करना चाहिए। बुध गायत्री मंत्र ऊँ सौम्यरूपाय विद्महे वाणेशाय धीमहि, तन्नो सौम्यः प्रचोदयात्॥
व्रत: बुधवार का व्रत ज्येष्ठ के शुक्ल पक्ष के प्रथम बुधवार से प्रारंभ करना चाहिए। कम से कम इक्कीस बार या पैंतालीस बार व्रत रखें। व्रत के दिन हरा वस्त्र धारण कर बुध के बीज मंत्र ''ऊँ बुं बुधाय नमः'' का एक सौ आठ दाने की स्फटिक माला पर तीन या सत्रह माला जप करें। उसके बाद गुड़ के साथ मूंग दाल का हलुवा या लड्डू भोग लगा कर स्वयं खाएं। अंतिम बुधवार को पूर्णाहुति हवन कर समापन करें तथा ब्राह्मण भोजन कराएं। हवन : अपामार्ग की समिधा।
दान : हरा वस्त्र, मूंगी, कांस्य, घृत, मिस्री, हाथी दांत, सुवर्ण, पन्ना, पुष्प, कपूर, दक्षिणा। औषधि स्नान : गोबर, अक्षत, फूल, गोरोचन, मधु, मोती, सोना। ग्रहपीड़ा निवृत्ति हेतु बुध यंत्र : बुध के यंत्र को बुधवार के दिन भोजनपत्र पर अष्टगंध से अनार की कलम से, लिखकर पंचोपचार पूजन कर स्वर्ण यंत्र या तांबे के यंत्र में मढ़वा कर अथवा ताम्र पत्र पर उत्कीर्ण करा कर पंचोपचार पूजन कर के हरे धागे में गूंथ कर सीधे हाथ में या गले में धारण करना चाहिए।
औषधि धारण : विधारामूल हरे कपड़े में सिल कर व हरे धागे में गूंथ कर बुधवार को धारण करना चाहिए या सोने के ताबीज में डाल कर धारण करना चाहिए। रत्न धारण : पन्ना 6( रत्ती का स्वर्ण में मढ़वा कर बुधवार के दिन प्रातः काल अंगूठी को दूध से, पुनः गंगा जल से धो कर, सीधे हाथ की अंगुली में धारण करना चाहिए। संभव हो तो अंगूठी में प्राण-प्रतिष्ठा कर के धारण करना चाहिए।
मोटापा और ब्रहस्पति
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गुरु यानी ब्रहस्पति व्यक्ति को बुद्धिमान बनता है परन्तु पढ़े लिखे लोग यदि मूर्खों जैसा व्यवहार करें तो समझ लीजिये कि व्यक्ति का गुरु कुंडली में खराब है | गुरु सोचने समझने की शक्ति को प्रभावित करता है और व्यक्ति जडमति हो जाता है | इसके अतिरिक्त गुरु कमजोर होने से पीलिया या पेट के अन्य रोग होते हैं | गुरु यदि दुष्ट ग्रहों से प्रभावित होकर लग्न को प्रभावित करता है तो मोटापा देता है | अधिकतर लोग जो शरीर से काफी मोटे होते हैं उनकी कुंडली में गुरु की स्थिति कुछ ऐसी ही होती है।
उपाय
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गुरु ग्रह की अनुकूलता हेतु आराध्य देव- ब्रह्म, विष्णु तथा इंद्र वैदिक उपाय : गुरु की अनुकूलता हेतु गुरु के वैदिक मंत्र का उन्नीस हजार जप करना चाहिए। वैदिक मंत्र ऊँ बृहस्पते अतियदर्योअर्ध्नाद्युमद्धि भातिक्रतुमज्जनेषु। यदीदयच्छवसऽऋत प्रजात तदस्मासु द्रविणं द्येहिचित्रम्। तांत्रिक मंत्र (क) ऊँ ग्रां ग्रीं ग्रौं सः गुरुवे नमः (ख) ऊँ बृं बृहस्पत्यै नमः गुरु के किसी तांत्रिक मंत्र का छिहत्तर हजार जप करना चाहिए।
हवन : अश्वस्थ (पीपल) की लकड़ी से हवन करना चाहिए।
दान : पीला अन्न, पीला वस्त्र, सोना, घृत, पीला फूल, पीला फल, पुखराज, हल्दी, कपड़ा, पुस्तक, शहद, नमक, चीनी, भूमि, छत्र, दक्षिणा आदि। औषधि स्नान : मालती पुष्प, पीला चंपा फूल, सरसों, पीली मुलहट्टी, शहद।
व्रत : ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष के प्रथम बृहस्पतिवार से यह व्रत प्रारंभ करके तीन वर्ष या सोलह गुरुवार को लगातार किया जाता है। इस व्रत को रखने वाले दिन में पीला वस्त्र धारण कर बृहस्पति के बीज मंत्र का एक सौ आठ माला, तीन माला या ग्यारह माला जप कर पीले फूल और बेसन के गुड़ से लड्डू बना कर, या गुड़ में दूध चावल मिला कर खीर को (केसरयुक्त कर) भोग लगा कर भोजन करें। अंतिम गुरुवार को पूर्णाहुति हवन कर गरीब ब्राह्मण को भोजन करा कर समापन करें। (हवन समिधा ऊपर वर्णित है) ग्रह पीड़ा निवृत्ति हेतु गुरु यंत्र गुरुवार को भोजपत्र पर हल्दी से अनार की कलम से लिख कर अथवा गुरु पुष्य, रवि पुष्य, सर्वाथ सिद्धी योग में ताम्र या स्वर्ण पत्र पर यंत्र उत्कीर्ण करा कर पंचोपचार पूजन कर के गले या बांह में धारण करना चाहिए।
रत्न धारण : पीला पुखराज 5( रत्ती स्वर्ण में मढ़वा कर गुरुवार को प्रातः काल कच्चे दूध से धो कर, गंगा जल से शुद्ध करा के किसी पंडित से प्राण प्रतिष्ठा करा कर, या गुरु मंत्र को निन्यान्वे बार जप कर धारण करना चाहिए। औषधि धारण : भृंगराज की पत्ती, या हल्दी की गांठ पीले कपड़े में सी कर व पीले धागे में लगा कर, गले में या सीधे हाथ की बांह में धारण करनी चाहिए।
शुक्र और शुगर
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शुक्र मनोरंजन का कारक ग्रह है | शुक्र स्त्री, यौन सुख, वीर्य और हर प्रकार के सुख और सुन्दरता का कारक ग्रह है | यदि शुक्र की स्थिति अशुभ हो तो जातक के जीवन से मनोरंजन को समाप्त कर देता है | नपुंसकता या सेक्स के प्रति अरुचि का कारण अधिकतर शुक्र ही होता है | मंगल की दृष्टि या प्रभाव निर्बल शुक्र पर हो तो जातक को ब्लड शुगर हो जाती है | इसके अतिरिक्त शुक्र के अशुभ होने से व्यक्ति के शरीर को बेडोल बना देता है | बहुत अधिक पतला शरीर या ठिगना कद शुक्र की अशुभ स्थिति के कारण हो
उपाय
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शुक्र ग्रह की अनुकूलता हेतु आराध्य-देवी- लक्ष्मी, इंद्राणी तथा दुर्गा जी वैदिक उपाय : शुक्र के वैदिक मंत्र का सोलह हजार जप करना चाहिए। वैदिक मंत्र ऊँ अन्नात्परश्रिुतो रसं ब्राह्मण व्यपिवत्क्षत्रं पयः सोमं प्रजापतिः। ऋतेन सत्यमिन्द्रियं विपानग्वं शुक्रमन्ध्रंस इन्द्रस्येन्द्रियर्मिदं पयोऽमृतं मु॥ तात्रिंक मंत्र (क) ऊँ द्रां द्रीं द्रौं सः शुक्राय नमः (ख) ऊँ शुं शुक्राय नमः शुक्र के किसी भी तांत्रिक मंत्र का चौंसठ हजार जप करना चाहिए। गायत्री मंत्र ऊँ भृगुजाय विद्महे दिव्यदेहाय धीमहि तन्नो शुक्रः प्रचोदयात्।
हवन : उदुंवर की समिधा से हवन करना चाहिए। दान : श्वेत चावल, श्वेत चंदन, श्वेत वस्त्र, श्वेत पुष्प, चांदी, हीरा, घृत, सोना, श्वेत घोड़ा, दही, सुगंध द्रव्य, शर्करा, गेहूं, दक्षिणा आदि। औषधि स्नान : इलायची छोटी, मैनसिल, सुवृक्ष मूल, केसर।
शुक्रवार व्रत : ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष के प्रथम शुक्रवार से व्रत प्रारंभ करके इक्कीस या तैंतीस शुक्रवार लगातार करें। व्रत के दिन उपासक स्नान कर, श्वेत वस्त्र धारण करके शुक्र के बीज मंत्र का एक सौ आठ दाने की स्फटिक अथवा रुद्राक्ष माला पर तीन या इक्कीस माला जप करें। उसके बाद दूध, चीनी, चावल से बनी खीर का भोग लगा कर स्वयं खाएं तथा दूसरों को भी खिलाएं। यदि संभव हो तो एक आंख वाले गरीब व्यक्ति (शुक्राचार्य) को दें, या गाय को खिलावें। अंतिम शुक्रवार को पूर्णाहुति, हवन द्वारा करें तथा चांदी, श्वेत वस्त्र, चावल, दूध, गरीब को दान में दें। ग्रह पीड़ा निवृत्ति हेतु
शुक्र यंत्र : भोजपत्र पर श्वेत चंदन एवं अनार की कलम से शुक्रवार को प्रातः काल लिख कर, पंचोपचार पूजन करके अथवा चांदी के पत्र पर शुक्रवार को उत्कीर्ण करा कर, पूजन कर गले या बांह में धारण करना चाहिए।
रत्न धारण : श्वेत पुखराज, हीरा, सफेद मूंगा - चांदी या श्वेत धातु में मढ़वा कर पंचोपचार पूजन, ब्राह्मण से प्राण प्रतिष्ठा करा कर, तर्जनी उंगली में धारण करना चाहिए। औषधि धारण : शुक्रवार के दिन केले की जड़ को सफेद कपड़े में बांध कर व सफेद धागे में (यदि रेशम का हो तो अच्छा है) बांध कर गले या बांह में धारण करना चाहिए।
लम्बे रोग और शनि
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शनि दर्द या दुःख का प्रतिनिधित्व करता है | जितने प्रकार की शारीरिक व्याधियां हैं उनके परिणामस्वरूप व्यक्ति को जो दुःख और कष्ट प्राप्त होता है उसका कारण शनि होता है | शनि का प्रभाव दुसरे ग्रहों पर हो तो शनि उसी ग्रह से सम्बन्धित रोग देता है | शनि की दृष्टि सूर्य पर हो तो जातक कुछ भी कर ले सर दर्द कभी पीछा नहीं छोड़ता | चन्द्र पर हो तो जातक को नजला होता है | मंगल पर हो तो रक्त में न्यूनता या ब्लड प्रेशर, बुध पर हो तो नपुंसकता, गुरु पर हो तो मोटापा, शुक्र पर हो तो वीर्य के रोग या प्रजनन क्षमता को कमजोर करता है और राहू पर शनि के प्रभाव से जातक को उच्च और निम्न रक्तचाप दोनों से पीड़ित रखता है | केतु पर शनि के प्रभाव से जातक को गम्भीर रोग होते हैं परन्तु कभी रोग का पता नहीं चलता और एक उम्र निकल जाती है पर बीमारियों से जातक जूझता रहता है | दवाई असर नहीं करती और अधिक विकट स्थिति में लाइलाज रोग शनि ही देता है |
उपाय
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शनि की अनुकूलता हेतु आराध्य देव- हनुमान जी तथा शनि देव वैदिक उपाय : शनि वैदिक मंत्र का तेईस हजार जप करना चाहिए। वैदिक मंत्र : ऊँ शन्नोदेवीरभीष्टये आपो भवन्तु पीतये संयोरभिश्रवण्तु नः तांत्रिक मंत्र (क) ऊँ प्रां प्रौं सः शनये नमः (ख) ऊँ ऐं ह्रीं श्रीं शनैश्चराय नमः। (ग) ऊँ शं शनैश्चराय नमः। शनि के किसी भी तांत्रिक मंत्र का बयानवे हजार जप करना चाहिए। गायत्री मंत्र : ऊँ भग भवाय विद्यहे मृत्युरूपाय धीमहि तन्नः शनि प्रचोदयात्।
शनिवार व्रत : शनिवार व्रत ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष के प्रथम शनिवार से प्रारंभ करना चाहिए। व्रत के दिन उपासक स्नान करके, काला वस्त्र धारण कर शनि के बीज मंत्र का एक सौ आठ दाने की स्फटिक या जीवापुत की माला से तीन या उन्नीस माला जप करें। उसके बाद एक थाल में जल, काला तिल, काला या नीला फूल, लवंग, गंगा जल, चीनी, दूध पूर्वाभिमुख हो कर पीपल की जड़ में डालें और तिल के तेल का दीपक जलावें। रात में काली उड़द की दाल की खिचड़ी स्वयं खाएं और दूसरों को भी खिलावें। पूजा-पाठ : पंचमुखी हनुमान कवच का पाठ एवंम शनि देव की स्तुति करें।
दान : तेल, नीलम, तिल, काला कपड़ा, कुलथी, लोहा, भैंस, काली गाय, काला फूल, काले जूते, कस्तूरी, सोना आदि। हवन : संध्या समय शमी समिधा (लकड़ी) से हवन करना चाहिए। औषधि स्नान : काला तिल, सुरमा, लोबान, धमनी, सौंफ, मुत्थरा, खिल्लां आदि।
शनि ग्रह पीड़ा निवृत्ति हेतु शनि यंत्र : भोजपत्र पर काली स्याही अनार की कलम से शनिवार को प्रातः काल लिख कर, पंचोपचार पूजन कर लौह पत्र पर शनिवार को उत्कीर्ण करा कर काले धागे में गूंथ कर गले या बांह में धारण करना चाहिए।
रत्न धारण : नीलम रत्न को चांदी या सोने में मढ़वा कर, पंचोपचार पूजन कर तथा ब्राह्मण से प्राण प्रतिष्ठा करा कर शनि की उंगली में (मध्यमा) शनिवार को शयन के पूर्व भोजन के बाद धारण करना चाहिए। काले घोड़े की नाल का शनिवार को छल्ला बनवा कर मध्यमा उंगली में शनिवार की रात्रि में धारण करें व छल्ले को तेल लगाएं। औषधि धारण : शमी मूल (जड़) को काले कपड़े या नीले कपड़े में बांध कर सीधे हाथ में धारण करना चाहिए।
ब्लड प्रेशर और राहू
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राहू एक रहस्यमय ग्रह है | इसलिए राहू से जातक को जो रोग होंगे वह भी रहस्यमय ही होते हैं | एक के बाद दूसरी तकलीफ राहू से ही होती है | राहू अशुभ हो तो जातक की दवाई चलती रहती है और डाक्टर के पास आना जाना लगा रहता है | किसी दवाई से रिएक्शन या एलर्जी राहू से ही होती है | यदि डाक्टर पूरी उम्र के लिए दवाई निर्धारित कर दे तो वह राहू के अशुभ प्रभाव से ही होती है | वहम यदि एक बीमारी है तो यह राहू देता है | डर के मारे हार्ट अटैक राहू से ही होता है | अचानक हृदय गति रुक जाना या स्ट्रोक राहू से ही होता है |
उपाय
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राहु की अनुकूलता हेतु आराध्य देव - भैरव भैरव की विधिवत् पूजा कर गुड़ और बेसन का रोट बना कर भोग लगाना चाहिए। स्वयं खाएं और कुत्ते को खिलाएं ।
वैदिक उपाय : राहु के वैदिक मंत्र का अट्ठारह हजार जप करना चाहिए। वैदिक मंत्र : ऊँ कयानश्चित्र आभुवदूती सदा वृघः सखा कया शचिष्ठया वृता॥ तांत्रिक मंत्र (क) ऊँ छ्रां छ्रीं छ्रौं सः राहुवे नमः (ख) रां राहवे नमः। राहु के किसी भी तांत्रिक मंत्र का बहत्तर हजार जप करना चाहिए।
राहु गायत्री मंत्र : ऊँ शिरोरूपाय विद्महे अमृते शाय धीमहि तन्नो राहु प्रचोदयात्॥ दान : उड़द, स्वर्ण का सांप, सात प्रकार के अन्न, नीला वस्त्र, गोमेद, काला फूल, चाकू, तिल डाल कर तांबे का बर्तन, सोना, रत्न, दक्षिणा। पूजन (क) शनिवार के दिन शिव जी के भैरव रूप की पूजा करनी चाहिए। (ख) श्री हनुमान बजरंग बाण का पाठ तथा हनुमान जी की पूजा करनी चाहिए।
हवन : रात्रि के समय दूब से हवन करना चाहिए।
औषधि स्नान : लोबान, तिल का पत्ता, मुत्थरा, गजदंत, कस्तूरी। राहु, ग्रह पीड़ा निवृत्ति हेतु राहु यंत्र (क) भोज पत्र पर नीले रंग से अनार की कलम से लिख कर, शनिवार को सायंकाल लिख कर, पंचोपचार पूजन कर अथवा लौह पत्र पर शनिवार को उत्कीर्ण करा कर पुनः पूजन कर के नीले धागे में बांध कर, गले और बांह में धारण करना चाहिए। (ख) उपर्युक्त यंत्र को अष्ट धातु की अंगूठी में उत्कीर्ण करा कर मध्यमा उंगली में धारण करना चाहिए। रत्न धारण (क) गोमद 7( रत्ती को चांदी में मढ़वा कर, पंचोपचार पूजन करके ब्राह्मणों द्वारा प्राण प्रतिष्ठा करा कर, उल्टे हाथ की मध्यमा उंगली में रात्रि भोजन के पश्चात् धारण करना चाहिए। (ख) यदि राहु के साथ चंद्रमा हो तो चांदी में मोती मढ़वा कर अनामिका में धारण करना चाहिए। (ग) यदि राहु के साथ सूर्य हो तो गारनेट चांदी में मढ़वा कर अनामिका उंगली में धारण करना चाहिए।
औषधि धारण : श्वेत चंदन को नीले वस्त्र में बांध कर शनिवार को सीधे हाथ, बांह या गले में पहनना चाहिए।
प्रेत बाधा और केतु
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केतु का संसार अलग है | यह जीवन और मृत्यु से परे है | जातक को यदि केतु से कुछ होना है तो उसका पता देर से चलता है यानी केतु से होने वाली बीमारी का पता चलना मुश्किल हो जाता है | केतु थोडा सा खराब हो तो फोड़े फुंसियाँ देता है और यदि थोडा और खराब हो तो घाव जो देर तक न भरे वह केतु की वजह से ही होता है | केतु मनोविज्ञान से सम्बन्ध रखता है | ओपरी असर या भूत प्रेत बाधा केतु के कारण ही होती है |
उपाय
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केतु ग्रह की अनुकूलता हेतु आराध्य देव - श्री गणेश जी वैदिक उपाय : ऊँ केतुं कृण्वन्न केतवे पेशो मर्या अपे से समुषभ्दिंरिजायथाः। वैदिक मंत्र का अट्ठारह हजार जप करना चाहिए। तांत्रिक मंत्र ऊँ ऐं ह्रीं केतवे नमः। ऊँ कें केतवे नमः केतु के किसी भी तांत्रिक मंत्र का बहत्तर हजार जप करना चाहिए।
दान : उड़द, कंबल, कस्तूरी, वैदूर्य मणि, लहसुनिया, काला फूल, तिल, तेल, रत्न, सोना, लोहा, बकरा, शास्त्र, सात प्रकार के अन्न, दक्षिणा।
पूजन : हनुमान जी की उपासना, हनुमान अष्टक तथा बजरंग बाण का पाठ नित्य करें। काली हृदय स्तोत्र का पाठ करें। शनि तथा मंगलवार को हनुमान जी के दर्शन कर बेसन के लड्डू का भोग लगावें। संभव हो तो शनिवार और मंगलवार को सिंदूर और चोला भी चढ़ाना चाहिए।
हवन : रात्रि काल कुशा की समिधा से हवन करना चाहिए। औषधि स्नान : लोबान, तिलपत्र, पुत्थरा, रत्न धारण : लहसुनि
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